शिव शंकर
💔 प्रेम में शिव बनना गलत नहीं है...
शिव तो स्वयं प्रेम के साक्षात् स्वरूप हैं।
उनका विलाप, उनका क्रंदन, उनका क्रोध—यह सब प्रेम की गहराई को दर्शाता है।
शिव ने सती के जाने के बाद पूरी सृष्टि हिला दी थी,
क्योंकि उनका प्रेम, सिर्फ एक व्यक्ति से नहीं था—वो आत्मा से जुड़ा हुआ था।
❝प्रेम गलत नहीं है,
प्रेम तो पवित्रता का सबसे उत्कृष्ट रूप है।❞
जब इंसान सच्चा प्रेम करता है,
तो वह शिव जैसा बन जाता है—
त्यागी, समर्पित, निष्कलंक।
लेकिन सवाल यह है...
जो स्त्रियाँ शिव जैसे पति की कामना करती हैं,
क्या वे स्वयं सती बनने को तैयार हैं?
क्या वे उस अग्नि परीक्षा से गुजरने को तैयार हैं
जहां पति के अपमान पर प्राण तक अर्पित कर देना पड़ता है?
सती ने कोई मांग नहीं की, कोई शर्त नहीं रखी—
बस प्रेम किया, पूर्ण समर्पण से।
और यही प्रेम शिव को भी व्याकुल कर गया,
इतना कि उनका तांडव ब्रह्मांड को कंपा गया।
तो हाँ,
प्रेमी होना ही शिव होना है।
जो प्रेम नहीं करता,
वो न शिव हो सकता है,
और न ही पूर्ण इंसान।
शिव होना आसान नहीं,
पर प्रेम करना…
वो तो आत्मा का सबसे सच्चा स्पंदन है।
🔱 शिव केवल क्रोध नहीं हैं, वे करुणा हैं, वे प्रेम हैं… और वे त्याग हैं।
प्रेम को समझना है, तो शिव को समझो।
और प्रेम करना है, तो सती बनने का साहस रखो।
🕉️✨
Comments
Post a Comment